गुरुवार, 7 जनवरी 2016

क्रमशः --- सामाजिक संस्थान 
सामाजिक संस्थान को समझने के लिए कुछ संस्थानों का वर्णन नीचे दिया जा रहा है-
परिवार प्रत्यक्ष नातेदारी संबंधों से जुड़े व्यक्तियों का एक समूह है जिसके बड़े सदस्य बच्चों के पालन-पोषण का दायित्व लेते हैं.
परिवार को एक प्राकृतिक (नैसर्गिक) सामाजिक संस्थान माना गया है, क्योंकि यह सभी समाजों में प्रारम्भ में ही विद्यमान रहा है. किसी समाज का स्वरूप चाहे कैसा भी रहा हो उनमें परिवार-विवाह-नातेदारी सदैव से रहा है.  परिवार को एक सामाजिक संस्थान माने जाने के निम्नांकित विशेषताओं को रेखांकित किया जा सकता है-
  1.       एक संस्था का अन्य संस्थाओं से सम्बन्ध होना. परिवार जो कि एक निजी क्षेत्र है आर्थिक-सांस्कृतिक-राजनैतिक आदि सार्वजनिक संस्थाओं से सम्बन्ध रहा है.
  2. .      संस्थानों की तरह परिवार का भी एक कार्य व दायित्व होता है.
  3. .      किसी संस्थान (परिवार) का कार्य समाज की व्यवस्थाओं को बनाए रखने में मदद करता है. जैसे- परिवार में यदि महिलाएं घर का काम और पुरुष बाहर का कार्य करते हैं तो यह औद्योगिक समाज को बनाए रखने में मदद करता है.[1]-[2]
  4.       संस्थाओं के स्वरूपों में परिवर्तन होना. जैसे संयुक्त परिवार से एकल परिवार वाले समाज में परिवर्तन. कृषि आधारित अर्थ व्यवस्था तथा औद्योगिक अर्थ व्यवस्था वाले शहरीकरण वाले समाज में क्रमशः संयुक्त एवं एकल परिवार का होना.
  5.       संस्थान के पास शक्ति या सत्ता का होना. जैसे परिवार के मुखिया के द्वारा अपनी शक्ति या सत्ता का उपयोग करते हुए अन्य सदस्यों को कार्य सौंपना.

विवाह को एक सामाजिक संस्थान माने जाने के निम्नांकित विशेषताओं को चिह्नित किया जा सकता है-
विवाह दो वयस्क (पुरुष-स्त्री) व्यक्तियों के बीच लैंगिक संबंधों की सामाजिक स्वीकृति है.
  1. 1.      संस्थान की ही तरह विवाह के भी अनेक स्वरूप होते हैं. जैसे- एकल विवाह, बहुविवाह.
  2. 2.      विवाह को भी किसी संस्थान की तरह नियंत्रित करने के कुछ नियम होते हैं. जैसे- एकल विवाह में कोई पुरुष किसी समय में एक ही स्त्री से और कोई स्त्री एक ही पुरुष से विवाह कर सकते हैं.
  3. 3.      दूसरे विवाह की अनुमति तभी होगी जब पहले विवाह साथी से तलाक हो गया हो या मृत्यु.
  4. 4.      कुछ समाजों में / परिवारों में यह भी प्रथाएं होती है कि कौन किससे विवाह कर सकता है और किससे नहीं. जैसे एक ही गोत्र में विवाह करने की अनुमति का न होना.

(ग)  राजनीति एक सामाजिक संस्थान -
इसे सामाजिक संस्था के रूप में समझने में मुख्य रूप से दो शब्दों (संकल्पनाओं) पर ध्यान केन्द्रित किया जा सकता है एक – शक्ति और दूसरा – सत्ता. इसे निम्नांकित दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है-
1.      शक्ति या सत्ता व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के पास होता है जिसका उपयोग उन व्यक्ति या समूह के लिए होता है जिसके पास ये शक्ति / सत्ता नहीं होती.
2.      राजनैतिक दलों के पास अपने कार्यक्रमों को पूरे देश में लागू करने की शक्ति होती है. इसी तरह दल के अध्यक्ष के पास किसी सदस्य को दल से पृथक करने की शक्ति होती है.
3.      उपरोक्त तरह के सभी शक्तियों का उपयोग सत्ता के माध्यम से किया जाता है.
4.      संस्थान का एक उद्देश्य होता है. राजनैतिक दल अपने उद्देश्यों को विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से करता है.
5.      संस्थान की एक वैधता होती है. राजनीति में शक्ति का उपयोग सत्ता के माध्यम से करने से उसमें एक प्रकार की वैधता आ जाती है जिसे समाज में न्याय संगत माना जाता है. जिससे शक्ति को संस्थागत स्वरूप मिल जाता है.
6.      संस्थान की एक निश्चित संरचना तथा कार्य विधियाँ होती है. इस मायने में ‘राज्य’[3] की एक संरचना व कार्यविधियों को आसानी से चिह्नित किया जा सकता है.
7.      उपरोक्त कार्यविधियों व संरचना पर उस समूह की आस्था होती है जिससे समूह संचालित होता है क्योंकि यह एक वैध व्यवस्था होती है. 
धर्म को सामाजिक संस्थान के रूप में समझने के लिए कुछ तथ्यों को निम्नांकित रूपों में व्यवस्थित किया जा सकता है-
  • 1.      धर्म विश्व के सभी समाजों में विद्यमान है. यद्यपि विभिन्न समाजों में इसका स्वरूप भिन्न-भिन्न होता है.
  • 2.      किसी संस्थान की तरह विश्व की सभी धर्मों की कुछ सामान्य विशेषताएं होती हैं-

·         प्रतीक / प्रतीकों का समुच्चय
·         सम्मान / श्रद्धा
·         अनुष्ठान-समारोह
·         विश्वासकर्ताओं का समूह
  • 3    सभी धर्मों की एक रीति-रिवाज / प्रथाएं होती हैं.
  • 4.      धर्म का अन्य सामाजिक संस्थाओं के साथ सम्बन्ध होता है. धर्म का राजनीति से सम्बन्ध का एक उदाहरण यह है कि इतिहास में समय-समय पर सामाजिक व राजनैतिक परिवर्तन के लिए धार्मिक आन्दोलन हुए हैं.
  • 5.      धर्म के साथ व्यक्ति / व्यक्तियों के समूह का एक आस्था होता है.
  • 6.      किसी राज्य का धर्म / पंथ निरपेक्ष का होना या न होना भी राजनीति व धर्म के संबंधों को दर्शाता है.
  • 7.      मैक्स वेबर के अनुसार कैल्विनवाद  जो कि प्रोटेस्टेंट इसाई धर्म की एक शाखा है, ने पूंजीवाद के उद्भव व विकास को प्रभावित करता है. कैल्विनवाद के सिद्धांत में मितव्ययता से रहना शामिल है. जिसमे निवेश को पवित्र सिद्धांत माना गया है जो पूंजी उत्पन्न कर आर्थिक विकास पर प्रभाव डालता है.

शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली एक प्रक्रिया है जिसमे औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों ही शिक्षा आती है. यहाँ सामाजिक संस्थान के रूप में शिक्षा को समझने के लिए औपचारिक शिक्षा को आधार बनाया गया है-
  • 1.      शिक्षा एक तरह से सामाजिक दक्षताएं प्राप्त करने का साधन है. जिसके कारण व्यक्ति को / समाज को इसकी आवश्यकता होती है जो प्रायः विश्व के सभी समाजों के लिए सत्य है.
  • 2.      व्यक्ति का समाजीकरण शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है.
  • 3.      सभी तरह के समाजों में एक मूल्य होता है.
  • 4.      शिक्षा की रचना एकरूपता, मानकीकृत व सार्वभौमिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए होती है. जैसे – विद्यालय में बच्चों की एक जैसी वर्दी का होना.
  • 5.      शिक्षा समाज में विशिष्ट व्यवसाय के लिए तैयार करती है एवं समाज के मूल्यों को आत्मसात करने के लिए तैयार करती है जो सामाजिक मानकों एवं आवश्यकताओं पर निर्भर होती है[4].
  • 6.      प्रकार्यवादियों के अनुसार शिक्षा सामाजिक संरचना को बनाए रखने तथा नवीनीकरण करने में मदद करती है.
  • 7.      शिक्षा समाज में स्तरीकरण के मुख्य अभिकर्ता के रूप में कार्य करती है. इसका असमान वितरण इसी स्तरीकरण का परिणाम है.
  • 8.      एक अच्छी शिक्षा के अवसर अनेक सामाजिक कारकों का परिणाम होता है.


सामाजिक संस्थाओं की विशेषताएं-
उपरोक्त सामाजिक संस्थाओं की विभिन्न विशेषताओं के आधार पर किसी सामाजिक संस्थान की विशेषताओं को निम्नांकित तरह से सूचीबद्ध किया जा सकता है-
  • 1.      संस्थान के उद्देश्य, कार्य व दायित्व होते है.
  • 2.      विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के मध्य आपसी सम्बन्ध होता है
  • 3.      संस्था का मानक-आस्था-मूल्य होता है 
  • 4.      सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में मददगार होता है.
  • 5.      संस्था का स्वरूप परिवर्तनशील होता है.
  • 6.      संस्था के पास एक शक्ति / सता विद्यमान होता है. नियंत्रण करने की शक्ति होती है.
  • 7.      नियमों / प्रथाएं होती है. इसे समाज में वैधता व स्वीकार्यता होती है, विश्वास होता है.
  • 8.      संस्था के प्रति समाज का सम्मान होता है.

|||||||||



[1] प्रकार्यवादियों के अनुसार (Giddens 2001)
[2] यद्यपि यह पुरी तरह सत्य नहीं है. अध्ययन यह बताते हैं कि वस्त्र निर्यात जैसे समकालीन उद्योग में महिला श्रमिक बल काफी रहा है.
[3] प्रकार्यवादी दृष्टिकोण ‘राज्य’ को समाज के प्रतिनिधि के रूप में देखती है. संघर्षवादी दृष्टिकोण राज्य को प्रभावशाली अनुभागों के रूप में देखता है.
[4] एमिल दुर्खाइम, प्रकार्यवादी दृष्टिकोण.

क्रमशः आगे : सामाजिक संस्थान

क्रमशः आगे : सामाजिक संस्थान
राधे श्याम थवाईत
Social institutions are established or standardized patterns of rule-governed behavior. They include the family, education, religion, and economic and political institutions.

क्रमशः --- (फीडबैक के बाद)
सामाजिक संस्थान को समझने के लिए कुछ संस्थानों का वर्णन नीचे दिया जा रहा है-
परिवार प्रत्यक्ष नातेदारी संबंधों से जुड़े व्यक्तियों का एक समूह है जिसके बड़े सदस्य बच्चों के पालन-पोषण का दायित्व लेते हैं.
परिवार को एक प्राकृतिक (नैसर्गिक) सामाजिक संस्थान माना गया है, क्योंकि यह सभी समाजों में प्रारम्भ में ही विद्यमान रहा है. किसी समाज का स्वरूप चाहे कैसा भी रहा हो उनमें परिवार-विवाह-नातेदारी सदैव से रहा है.  परिवार को एक सामाजिक संस्थान माने जाने के निम्नांकित विशेषताओं को रेखांकित किया जा सकता है-
1.      एक संस्था का अन्य संस्थाओं से सम्बन्ध होना. परिवार जो कि एक निजी क्षेत्र है आर्थिक-सांस्कृतिक-राजनैतिक आदि सार्वजनिक संस्थाओं से सम्बन्ध रहा है.
2.      संस्थानों की तरह परिवार का भी एक कार्य व दायित्व होता है.
3.      किसी संस्थान (परिवार) का कार्य समाज की व्यवस्थाओं को बनाए रखने में मदद करता है. जैसे- परिवार में यदि महिलाएं घर का काम और पुरुष बाहर का कार्य करते हैं तो यह औद्योगिक समाज को बनाए रखने में मदद करता है.[1]-[2]
4.      संस्थाओं के स्वरूपों में परिवर्तन होना. जैसे संयुक्त परिवार से एकल परिवार वाले समाज में परिवर्तन. कृषि आधारित अर्थ व्यवस्था तथा औद्योगिक अर्थ व्यवस्था वाले शहरीकरण वाले समाज में क्रमशः संयुक्त एवं एकल परिवार का होना.
5.      संस्थान के पास शक्ति या सत्ता का होना. जैसे परिवार के मुखिया के द्वारा अपनी शक्ति या सत्ता का उपयोग करते हुए अन्य सदस्यों को कार्य सौंपना.
विवाह को एक सामाजिक संस्थान माने जाने के निम्नांकित विशेषताओं को चिह्नित किया जा सकता है-
विवाह दो वयस्क (पुरुष-स्त्री) व्यक्तियों के बीच लैंगिक संबंधों की सामाजिक स्वीकृति है.
1.      संस्थान की ही तरह विवाह के भी अनेक स्वरूप होते हैं. जैसे- एकल विवाह, बहुविवाह.
2.      विवाह को भी किसी संस्थान की तरह नियंत्रित करने के कुछ नियम होते हैं. जैसे- एकल विवाह में कोई पुरुष किसी समय में एक ही स्त्री से और कोई स्त्री एक ही पुरुष से विवाह कर सकते हैं.
3.      दूसरे विवाह की अनुमति तभी होगी जब पहले विवाह साथी से तलाक हो गया हो या मृत्यु.
4.      कुछ समाजों में / परिवारों में यह भी प्रथाएं होती है कि कौन किससे विवाह कर सकता है और किससे नहीं. जैसे एक ही गोत्र में विवाह करने की अनुमति का न होना.
(ग)  राजनीति एक सामाजिक संस्थान -
इसे सामाजिक संस्था के रूप में समझने में मुख्य रूप से दो शब्दों (संकल्पनाओं) पर ध्यान केन्द्रित किया जा सकता है एक – शक्ति और दूसरा – सत्ता. इसे निम्नांकित दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है-
1.      शक्ति या सत्ता व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के पास होता है जिसका उपयोग उन व्यक्ति या समूह के लिए होता है जिसके पास ये शक्ति / सत्ता नहीं होती.
2.      राजनैतिक दलों के पास अपने कार्यक्रमों को पूरे देश में लागू करने की शक्ति होती है. इसी तरह दल के अध्यक्ष के पास किसी सदस्य को दल से पृथक करने की शक्ति होती है.
3.      उपरोक्त तरह के सभी शक्तियों का उपयोग सत्ता के माध्यम से किया जाता है.
4.      संस्थान का एक उद्देश्य होता है. राजनैतिक दल अपने उद्देश्यों को विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से करता है.
5.      संस्थान की एक वैधता होती है. राजनीति में शक्ति का उपयोग सत्ता के माध्यम से करने से उसमें एक प्रकार की वैधता आ जाती है जिसे समाज में न्याय संगत माना जाता है. जिससे शक्ति को संस्थागत स्वरूप मिल जाता है.
6.      संस्थान की एक निश्चित संरचना तथा कार्य विधियाँ होती है. इस मायने में ‘राज्य’[3] की एक संरचना व कार्यविधियों को आसानी से चिह्नित किया जा सकता है.
7.      उपरोक्त कार्यविधियों व संरचना पर उस समूह की आस्था होती है जिससे समूह संचालित होता है क्योंकि यह एक वैध व्यवस्था होती है. 
धर्म को सामाजिक संस्थान के रूप में समझने के लिए कुछ तथ्यों को निम्नांकित रूपों में व्यवस्थित किया जा सकता है-
1.      धर्म विश्व के सभी समाजों में विद्यमान है. यद्यपि विभिन्न समाजों में इसका स्वरूप भिन्न-भिन्न होता है.
2.      किसी संस्थान की तरह विश्व की सभी धर्मों की कुछ सामान्य विशेषताएं होती हैं-
·         प्रतीक / प्रतीकों का समुच्चय
·         सम्मान / श्रद्धा
·         अनुष्ठान-समारोह
·         विश्वासकर्ताओं का समूह
3.      सभी धर्मों की एक रीति-रिवाज / प्रथाएं होती हैं.
4.      धर्म का अन्य सामाजिक संस्थाओं के साथ सम्बन्ध होता है. धर्म का राजनीति से सम्बन्ध का एक उदाहरण यह है कि इतिहास में समय-समय पर सामाजिक व राजनैतिक परिवर्तन के लिए धार्मिक आन्दोलन हुए हैं.
5.      धर्म के साथ व्यक्ति / व्यक्तियों के समूह का एक आस्था होता है.
6.      किसी राज्य का धर्म / पंथ निरपेक्ष का होना या न होना भी राजनीति व धर्म के संबंधों को दर्शाता है.
7.      मैक्स वेबर के अनुसार कैल्विनवाद  जो कि प्रोटेस्टेंट इसाई धर्म की एक शाखा है, ने पूंजीवाद के उद्भव व विकास को प्रभावित करता है. कैल्विनवाद के सिद्धांत में मितव्ययता से रहना शामिल है. जिसमे निवेश को पवित्र सिद्धांत माना गया है जो पूंजी उत्पन्न कर आर्थिक विकास पर प्रभाव डालता है.
शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली एक प्रक्रिया है जिसमे औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों ही शिक्षा आती है. यहाँ सामाजिक संस्थान के रूप में शिक्षा को समझने के लिए औपचारिक शिक्षा को आधार बनाया गया है-
1.      शिक्षा एक तरह से सामाजिक दक्षताएं प्राप्त करने का साधन है. जिसके कारण व्यक्ति को / समाज को इसकी आवश्यकता होती है जो प्रायः विश्व के सभी समाजों के लिए सत्य है.
2.      व्यक्ति का समाजीकरण शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है.
3.      सभी तरह के समाजों में एक मूल्य होता है.
4.      शिक्षा की रचना एकरूपता, मानकीकृत व सार्वभौमिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए होती है. जैसे – विद्यालय में बच्चों की एक जैसी वर्दी का होना.
5.      शिक्षा समाज में विशिष्ट व्यवसाय के लिए तैयार करती है एवं समाज के मूल्यों को आत्मसात करने के लिए तैयार करती है जो सामाजिक मानकों एवं आवश्यकताओं पर निर्भर होती है[4].
6.      प्रकार्यवादियों के अनुसार शिक्षा सामाजिक संरचना को बनाए रखने तथा नवीनीकरण करने में मदद करती है.
7.      शिक्षा समाज में स्तरीकरण के मुख्य अभिकर्ता के रूप में कार्य करती है. इसका असमान वितरण इसी स्तरीकरण का परिणाम है.
8.      एक अच्छी शिक्षा के अवसर अनेक सामाजिक कारकों का परिणाम होता है.




उपरोक्त सामाजिक संस्थाओं की विभिन्न विशेषताओं के आधार पर किसी सामाजिक संस्थान की विशेषताओं को निम्नांकित तरह से सूचीबद्ध किया जा सकता है-
1.      संस्थान के उद्देश्य, कार्य व दायित्व होते है.
2.      विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के मध्य आपसी सम्बन्ध होता है
3.      संस्था का मानक-आस्था-मूल्य होता है 
4.      सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में मददगार होता है.
5.      संस्था का स्वरूप परिवर्तनशील होता है.
6.      संस्था के पास एक शक्ति / सता विद्यमान होता है. नियंत्रण करने की शक्ति होती है.
7.      नियमों / प्रथाएं होती है. इसे समाज में वैधता व स्वीकार्यता होती है, विश्वास होता है.
8.      संस्था के प्रति समाज का सम्मान होता है.
|||||||||


  





[1] प्रकार्यवादियों के अनुसार (Giddens 2001)
[2] यद्यपि यह पुरी तरह सत्य नहीं है. अध्ययन यह बताते हैं कि वस्त्र निर्यात जैसे समकालीन उद्योग में महिला श्रमिक बल काफी रहा है.
[3] प्रकार्यवादी दृष्टिकोण ‘राज्य’ को समाज के प्रतिनिधि के रूप में देखती है. संघर्षवादी दृष्टिकोण राज्य को प्रभावशाली अनुभागों के रूप में देखता है.
[4] एमिल दुर्खाइम, प्रकार्यवादी दृष्टिकोण.