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सोमवार, 18 अप्रैल 2011

जाति व्यवस्था का शिक्षा व शिक्षण पर प्रभाव

डी.एड. प्रथम वर्ष


पठन सामग्री क्र.- ४


जाति व्यवस्था का शिक्षा व शिक्षण पर प्रभाव


कॉन्सेप्ट मेपिंग






1. जाति व्यवस्था की धारणा- व्यक्ति को क्या काम करना है? किस तरह का जीवन जीना है? जन्म से ही तय होता है.


2. लोगों की सामाजिक एवं आर्थिक हैसियत को बदलने में शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है.


3. शालाओं में कुछ खास वर्ण के लोगों की भाषा, संस्कृति और तौर तरीकों का प्रभाव अधिक होता है. इससे कुछ तबकों के बच्चों को मुश्किलें उठानी पडती है.


4. दलितों व आदिवासियों को शिक्षित होने के लिए कई तरह के पूर्वाग्रहों व बाधाओं का सामना करना पडता है.


5. शिक्षकों की सामाजिक पृष्ठभूमि, शालाओं में उनके व्यवहार को काफी हद तक नियंत्रित करती है.


6. सामाजिक चतुराई, शालीन भाषा, शिष्टाचार और फैशन सांस्कृतिक पूंजी के अंग हैं. जो प्रभुत्वशाली वर्ग के बच्चों कों शैक्षणिक संस्थानों में विशेष दर्जा दिलाती है.


7. समुदाय के अनुरूप शालाओं का शैक्षिक कैलेण्डर स्कूलों में बच्चों की भागीदारी बढ़ा सकती है.


8. शाला में लोकतांत्रिक मूल्यों को विकसित कर समाज के जातीय ढांचें में परिवर्तन की जा सकती है.





पाठ में निहित उद्देश्य-


उपरोक्त अवधारणाओं को समझने के लिए हमें जानना होगा कि-


· जाति व्यवस्था क्या है, इसमे कौन-कौन सी धारणा निहित है?


· शालाओं में पदस्थ शिक्षकों की सामाजिक पृष्ठभूमि उनके व्यवहार को कैसे नियंत्रित करती है?


· बच्चों के शाला छोडने में जाति व्यवस्था की क्या भूमिका होती है?


· दलितों व आदिवासियों की शिक्षा में कौन-कौन से पूर्वाग्रह एवं बाधाएं हैं?


कक्षा शिक्षण की प्रक्रिया-


कक्षा में निम्नांकित प्रश्नों के आधार पर छात्राध्यापकों के मध्य खुली चर्चा कराना-


· जाति व्यवस्था से आप क्या समझतें है?


· जाति व्यवस्था के प्रति आपकी क्या धारणा है?


· शाला के शिक्षकों के व्यवहार में जातीय व्यवस्था की क्या भूमिका है?


· समाज में व्याप्त असमानताओं को समाप्त करने में शालाओं एवं शिक्षकों की क्या भूमिका हो सकती है?


· लोकतांत्रिक मूल्य क्या हैं? इसे विकसित करने में शालाओं की क्या भूमिका हो सकती हैं?


उपरोक्त बिंदुओं में जब कोई छात्राध्यापक अपना विचार व्यक्त करे तो अन्य छात्राध्यापकों की इस पर सहमती और असहमती जानें, उन्हें बोलने के लिए प्रेरित करें. उन्हें अपनी बात रखने के लिए शाला शिक्षण अनुभव से उदाहरण देने के लिए कहें, शिक्षण अनुभव से जोडने के लिए कहें.





मूल्यांकन प्रक्रिया-


1. छात्राध्यापकों के पास कुल १२५ दिवसों (प्रथम एवं द्वितीय वर्ष) का शिक्षण अनुभव है. इस आधार पर छात्राध्यापक एक निबंध लिखें जिसमें जाति व्यवस्था का बच्चों की शिक्षा पर पडने वाले प्रभाव, बच्चों के शाला छोडने के कारणों का जिक्र हो.


2. शिक्षकों की सामाजिक पृष्ठभूमि का और उनकी शाला में बच्चों के साथ व्यवहार के मध्य संबंधों को चिन्हित कर टीप लिखवाना.


3. यदि किसी छात्राध्यापक ने बच्चों / शिक्षकों के सामाजिक पृष्ठभूमि पर परियोजना कार्य किया हो तो उसे भी मूल्यांकन का हिस्सा बनाएँ.


IIIIIIIII